tag:blogger.com,1999:blog-77201774300667711012024-03-14T13:13:25.723+05:30aao baatein kareनीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-9198377239331685112011-03-17T14:40:00.004+05:302011-03-17T14:44:30.318+05:30वसंत चेहरे से उतर रहा था...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWaAxd-wJki88PFitb3fnjo8WHhZyZGJjH8p27LirmVN8uT75nyOkSmdz1oBOiiSbt_MiS5Ka-PEy0fyu2N1VOh1TfdUCUaTWkZq8Muw1YVusedSTHlLQLZdnpRJ3rMkfe5cD8jFrC6Iyx/s1600/face.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5584974218956721170" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 230px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWaAxd-wJki88PFitb3fnjo8WHhZyZGJjH8p27LirmVN8uT75nyOkSmdz1oBOiiSbt_MiS5Ka-PEy0fyu2N1VOh1TfdUCUaTWkZq8Muw1YVusedSTHlLQLZdnpRJ3rMkfe5cD8jFrC6Iyx/s320/face.jpg" border="0" /></a><br /><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span></div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span> </div><div>वंसत चेहरे से उतर रहा था<br />ग्रीष्म आगोश में ले रहा था ...<br />बारिश तो पहले ही जा चुकी थी<br />सर्दी की गरमाट भी ठंडी थी<br />वो लड़की थी<br />उसका चेहरा बहुत कुछ बता रहा था<br /><br />कभी लिखी गई होगी कविता<br />कभी सपनों में रंग भरे गये होंगे<br />कभी कोई रहा होगा उसका ख्वाब<br />पर अब<br />वसंत चेहरे से उतर रहा था...</div>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-71215177179513475582010-12-22T16:32:00.002+05:302010-12-22T16:35:12.596+05:30स्मृतिशेष-कुछ लोग दोबारा नहीं मिलेंगेअपनी छोटी सी, स्पनील दुनिया से निकल दिल्ली आया था..मेरे शहर में कारखाने.. क़ॉलोनिया, स्कूल, जंगल, झार सब था..और एक डैम भी था..पहली बार अलग हुआ था, अपने शहर से, परायी दिल्ली के लिए...सोचता था ना जाने किस तरह के लोग मिलेंगे..मेरे आंखों की चुप्पी कोई पढ़ भी पाएगा या नहीं...या फिर दिल्ली डराने वाली आंखों से जवाब देगी...पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ..दिल्ली में मुझे कुछ वैसे लोग मिले, जिनसे दिल्ली अपने दिल में सांसे भरती रही थी....सुरेंद्र मोहन सर भी उन्हीं में से एक थे...दिल्ली में पहली पहचान समाजवादी दफ्तर में मिली...समाजवादी इतिहास और उसके मर्म से बेखबर मेरे जैसे शख्स को समाजवादी जन परिषद के दफ्तर का जिम्मा मिला था...अक्टूबर 2000 में सजप ने युवा कार्यशाला का आयोजन कानपुर में किया था... मुझे याद है सन् 2000 दस अक्टूबर की सुबह हम कानपुर स्टेशन पर उतरे थे...हमें पनकी जाना था...वहीं एक फार्म हाऊस में युवा कैंप और कार्यकारिणी की बैठक होनी थी...पूरे देश से लोग आने वाले थे...मैंने उनके बुलावे के लिए चिट्ठिया लिखी थी...10 अक्टूबर की सुबह हम (राजीव, पुरूष और मैं) उत्तर प्रदेश के एक गांव में थे...मेरे सामने समाजवादी आंदोलन के धुंरधरों की फौज थी...कोई खद्दर लपेटे, कोई चश्मा लगाए, तो कोई संघर्ष निशानियां लिए था...लेकिन हर चेहर पर जोश था...आंखों में सपना था, समाज को बदलने का...कैंप में बड़ा ही खुशनुमा माहौल था...हर तरफ चहल पहल थी...सुरेंद मोहन, किशन पटनायक, विनोदनंद, योगेद्र यादव जैसे दिग्गज अलग अलग मुद्दे पर अपनी राय रखने वाले थे...कई समकालीन मुद्दे थे...भूमंडलीकरण, समाजवादी आंदोलन की दिशा, एक ध्रुवीय विश्व...मुझे ठीक ठीक याद नहीं है कि सुरेद्र मोहन सर ने किस विषय पर बोला था...बस इतना याद है कि वो जो बोल रहे थे, मैं उसे रिकार्ड कर रहा था...दस साल पहले रिकार्ड किया था...कुछ महीने पहले भी दिल्ली के सहविकास सोसायटी वाले प्लैट में उनसे दोबारा देखने का मौका मिला..विनोद सर (विनोदानंद प्रसाद सिंह, नया संघर्ष के संपादक) वहीं रूके हुए थे...मैंने विनोद सर से बात कर था कि अचानक बगल वाले कमरे से सुरेद्र मोहन सर के कमरे से आवाज आई...कमरे में जाने पर आंटी ने बताया कि प्रिंटर में पेपर फंस गया है...तुम्हें ठीक करना आता है क्या...मैंने प्रिंटर ठीक कर दिया... और साथ ही प्रिंट भी निकाली दी...सुरेंद्र मोहन सर मुझे नाम से जानते थे...मैं एक चैनल में कार्यरत हूं...उस दिन न्यूज रूम में अचानक राजीव कमल जी ने पूछा कि-सुरेंद्र मोहन जी को पहचानते हैं...मैंने जवाब धीरे-धीरे से जवाब दिया-हां..राजीव कमल जी ने बाद में बताया कि मुझे सुरेंद्र मोहन जी पर एक खबर लिखनी है...उनके देहावसान की खबर...मैं उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया है...बिना कुछ बोले...उनकी विदाई की खबर लिख दी...मन में ख्याल आया क्या इसी तरह मुझसे मेरे सारे अपने एक एक बिछड़ जाएंगे...नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-59629656118209566972010-11-11T11:35:00.002+05:302010-11-11T11:45:32.292+05:30जय छठी मइया<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMuencTJAw_mTImckMMwgzcZTqFgloPOVowwg-f0uOplcN9ptp7qc48PGB6fIdoVis911IV1PDz29oUQxo_Vg2MJI9BUNosI6hnLaUauqgxGD4BinsuiZAykrO1P8pzLUK2CaG85jF36oO/s1600/4043196466_2a82a0ced1_z.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5538171656950015938" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 219px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMuencTJAw_mTImckMMwgzcZTqFgloPOVowwg-f0uOplcN9ptp7qc48PGB6fIdoVis911IV1PDz29oUQxo_Vg2MJI9BUNosI6hnLaUauqgxGD4BinsuiZAykrO1P8pzLUK2CaG85jF36oO/s320/4043196466_2a82a0ced1_z.jpg" border="0" /></a><br /><div>त्योहार जीवन में उर्जा भरते हैं...उसे तरोजाता रखते हैं...त्योहार अपने साथ धूम-धड़ाका लेकर आते हैं...लेकिन धूम-धड़ाके के बीच ही ये परंपरा को सदियों तक सहेजे रहते हैं...हर उस चीज के प्रति आभार व्यक्त करते हैं जिसकी बदौलत जिंदगी चलती रहती है...कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक ब्रह्म और शक्ति के पूजन के लिए छठ किया जाता है...ब्रह्म के रूप में सूर्य और शक्ति स्वरूपा छठी मइया देवी की पूजा उन्हीं चीजों के प्रति आभार है जिसकी वजह से जीवन की धारा बहती जा रही है.... आदिशक्ति को साक्षी मानकर सूर्य की उपासना की जाती है....निर्जला व्रत धारण किया जाता है...बच्चों की सलामती के लिए गीत गाए जाते हैं...छठ पुजा आस्था का अनोखा उदाहरण है...जीवन को संचालित करने के लिए प्रकृति से जो नेमते इंसान को मिलती रही हैं, उसके लिए प्रकृति और परमात्मा का धन्यवाद करने का छठ पुरबिया अंचल के लोगों का अनोखा तरीका है...छठ पूजा का नाम सुनते है ही...मन में पवित्रता का एहसास उमड़ता है..डुबते और उगते सूर्य की आभा में आस्था का सूरज निकलता है.. जो जिंदगी और खूबसूरत बना देना देता है...</div>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-11494014528139961222010-11-11T10:06:00.002+05:302010-11-11T10:13:47.630+05:30लेन-देन ही बुनियादी शर्त हैएक सवाल आफिस की छत पर...<br /><span class=""></span>इस शहर ने मुझे दिया क्या है...<br />कुछ बदहवास, बेलौस मुलाकातों के बाद...<br /> मैं पहुंचा हूं जहां<br />वहां एक क्षितिज हैं मेरे पासउड़ने के लिए<br />बीतने के लिए कुछ लोग<br />संभालने के लिए कुछ सहारे<br />और वो आशा<br />जिसके सामने हर बार निराशा बौनी पड़ती रही है<br />सब इसी शहर के हैं...<br />एक सवाल और भी है इस शहर से<br />उसने मुझसे लिया क्या है<br />मेरी आवारगी, मासूमियत, वो बचपन मेरा भोला सा<br />वो शहर मेरा <span class="">छोटा सा</span><br />मेर रिश्ते प्यारे से<br />सब इसी शहर ने छीने हैं<br />पर मैं निराश नहीं इस शहर से<br />क्योंकि लेन-देन ही बुनियादी शर्त है<br />शहरी होने कानीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-58956296547421569192010-10-13T11:44:00.001+05:302010-10-13T12:13:11.081+05:30भारतीय राजनीति की अनमोल विरासत...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSN42xLUubtPQ6P1r2mIbJh8iat4MojeMV9OnS92hELe1ujvYDevSMoZDIsxOpU-nGy-yZfEXiq0IGXLipFoenzSh-oqZsywBjb9FDPHzCena9LHrO7elg1JWfk4-IAkQHI_Kol8wlnNTo/s1600/jpnarayan.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5527417380626902786" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 201px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSN42xLUubtPQ6P1r2mIbJh8iat4MojeMV9OnS92hELe1ujvYDevSMoZDIsxOpU-nGy-yZfEXiq0IGXLipFoenzSh-oqZsywBjb9FDPHzCena9LHrO7elg1JWfk4-IAkQHI_Kol8wlnNTo/s320/jpnarayan.jpg" border="0" /></a><br /><div></div><br /><br /><br /><br /><br />लोकनायक जय प्रकाश कहिये या जेपी या भारतीय राजनीति की अनमोल विरासत...जेपी की लौ से क्रांति की जो मशाल जली , उसने देश को हिला दिया, बल्कि युवाओं को राजनीति धर्म का पाठ भी पढ़ाया...लोकनायक जय प्रकाश नारायण ...एक ऐसा नाम है जिसने सत्तर के दशक में भारतीय राजनीति और समाज की दिशा बदल दी... जयप्रकाश नारायण लोकनायक माने गए, क्योंकि इनके विचार के हर कतरे में जनता की बात थी...अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के विकास की बात थी...एक संपूर्ण बदलाव की बात थी, जिसके केंद्र में कोई और नहीं बल्कि देश का आम नागरिक था...चाहे वो स्वतंत्रता संग्राम का दौर रहा हो या फिर आजादी के बाद का भारत, लोकनायक जयप्रकाश नारायण हमेशा ही सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं...गांधी से लेकर नेहरू तक जेपी के जज्जे और सर्घष के साक्षी रहे....11 अक्टूबर 1902 को बलिया के सिताबदियारा में जन्मे इस महान शख्सियत ने समता, स्वतंत्रता जैसे मूल्यों पर आधारित समाज की संरचना के लिए संघर्ष की जो मिसाल पेश की वो भारतीय राजनीति में दुर्भल है... जेपी क्रान्ति का सूत्रपात भारत के गांवों से करना चाहते थे... उनका मानना था कि गांव समाज की समस्याओं का समाधान सम्पूर्ण क्रान्ति का सबसे बड़ा मकसद है...यही वजह थी कि रचना, संघर्ष, शिक्षण और सांगठनिक प्रक्रिया से वो गांवों को बदलना चाहते थे...उनका माना था कि जब गांव बदलेंगे तो शहर खुद ब खुद बदल जाएंगे...जेपी के लिए विचार से बढ़कर कोई न था... सोच समाजवादी और तेवर से माक्सवादी जेपी का ही ये करिश्मा था कि संपूर्ण क्रांति की अलख जगाने के लिए लाखों युवा अपना सबकुछ छोड़कर उनके पीछे निकल पड़े...देशव्यापी भ्रष्टाचार के खिलाफ 1974 में विरोध की जो आंधी जय प्रकाश के नेतृत्व में उठी , वो आपातकाल की बंदिशों और जुल्मों को अपने साथ उड़ा ले गयी है...वो जेपी का ही जादू था, जिसके बल पर जनता ने पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार को देश की कमान सौंपी ... ...जेपी सिर्फ संपूर्ण क्रांति के ही सूत्रधार नहीं थे, बल्कि मौजूद राजनीति के धुरंधरो को गढ़ने में उनकी एक गुरु की तरह महत्वपूर्ण भूमिका रही..पिछले चार दशक में जो चेहरे भारतीय राजनीति की तस्वीर बने या फिर राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, वो कहीं न कहीं जेपी आंदोलन से निकले हैं...पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान जैसे नेताओँ के या जेपी प्रेरणास्रोत्र रहे हैं या फिर उन्होंने जेपी आंदोलन से अपनी राजनीति शुरू की...खास तौर से बिहार की राजनीति तो आज पूरी तरह जेपी के चेलों के हवाले हैं... बिहार में पक्ष विपक्ष और निष्पक्ष ... हर कहीं जेपी के लोग हैं...ये बात और है कि संपूर्ण क्रांति की मशाल कब की बुझ चुकी है…..जिन मूल्यों की राजनीति जेपी करते थे उन मूल्यों को सत्ता की चकाचौंध में उनके चेले भूल गये...जेपी के विद्यार्थियों में सबसे पहला नाम है लालू प्रसाद यादव का...छात्र आंदोलन में जेपी के लिए लाठी खाने वाले लालू यादव बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री बने...लेकिन जेपी के इस विद्यार्थी की दूर्दशिता बिहार की दुर्दशा वजह बनी है... बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भी जेपी स्कूल के हैं...यानि बिहार जेपी का एक चेला शासन चला रहा है तो दूसरा चेला विपक्ष संभाल रहा है...सुशील कुमार मोदी, शिवानंद तिवारी, रामविलास पासवना जैसे नेताओं ने भी जेपी आंदोलन से अपनी राजनीति चमकायी थी..इन नेताओं की राजनीति चमक तीन दशक बाद भी बरकरार है, लेकिन इनकी चमक बिहार के लोगों के काम नहीं आई है...1977 के छात्र आन्दोलन का नेतृत्व जब लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने संभाला तब उनका मकसदा आंदोलन के जरिए व्यवस्था परिवर्तन करना था...लेकिन जेपी के चेले व्यवस्था परिवर्तन के बजाय सत्ता के समीकरण में यकीन रखते हैं...यही वजह है अमीरी-गरीब, जात पात जैसी सामाजिक बुराइयो के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले जेपी के ये चेले जात पात को ही अपनी राजनीति का आधार बना लिया ...जेपी के चेलों के होते हुए है अगर बिहार का नवनिर्माण नहीं हो सका इसे या जेपी के विचारों की विफलता कहा जाएगा या फिर उनके चेलों की व्यक्तिगत असफलता...जेपी के इन चेलों को अंदर एक बार जरूर झांकर देखना चाहिए... और सोचना चाहिए कि जेपी अगर होते तो क्या कहते....नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-8007699094926201862010-09-27T15:58:00.004+05:302010-09-28T08:43:55.634+05:30गौरवशाली है बिहार<p>कुछ यूं देखता हूं अपनी जड़ों को<br />कुछ ऐसे बसी है मेरी मिट्टी मेरे अंदर<br />बिहार के कुछ ऐसे सहेजा है मैंने ...</p><p>बिहार पर पहली बार कुछ बनाया है</p><p></p><p><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dx1pK1ZjzI5sNna0DqXS4tFKzMs6OLRhYm1EbhfKWbDtn0U8mSPOY4IeUKd-V0a6lfR3gasOPKnE2gzDyjkbQ' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></p><p></p><p><span class=""></span></p><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dzhuH7iri5JkVs8Iv0NnqE5hlULVMQ3appJkEcjtM6kWqvg3wSbcNFqBrKKsCx1Sg9gH6p1xhWzAdHqvYP13Q' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dxxJaG5a3fUwNtUBf68YxbXonr_s9RD-6eouMb3vPL91sNrGUtLVEYguqTU1CUdLhBwX0w-IZsw_OoSdZ9WGA' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-44303502793470940892010-09-20T12:41:00.001+05:302010-09-20T12:53:05.008+05:30नशा शराब में होता, तो नाचती बोतल<span style="color:#000099;">नशा शराब में होता, तो नाचती बोतल...ये जुमला आपने सुना होगा...किसी अनजाने शायर के इन शब्दों में आपको सच्चाई भी नजर आई होगी...तर्क की कसौटी को बिना घिसे मैं भी इस जुमले की सच्चाई में यकीन करता हूं...लेकिन ये यकीन मेरे मन में यू ही नहीं आ बैठा है...मैंने इस जुमले के हर शब्द को चरित्रार्थ होते देखा है...चलिए आपको भी बताता हूं...मेरे मित्र नरेंद्र की शादी थी..ये शादी दिल्ली में हो रही थी...वैसे मैं शादी-वादी की पार्टियों से परहेज करता हूं...लेकिन नरेंद्र को नकार न सका...और चला गया देसी अंदाज में तैयार होकर..नोएडा के एक भव्य माल में शादी का आयोजन किया गया था... शादी की जगह पर पहुंचकर लगा मानो किसी शहंशाह के शाही भोज में आया हूं...हिन्दुस्तानी शादी के अंदाज को देख लगता है कि हर आदमी शहंशाह बनने की ख्वाहिश पालता है..यही वजह है शादियों में सारी कसर पूरी करता है...गाजा-बाजा-सिंहासन, वो सब कुछ का लुत्फ उठाता है, जो आम जिंदगी में उसके कुव्वत के बाहर की चीज होती है...नरेंद्र की शादी में खाने पीने से लेकर नाचने तक की बड़ी शानदार व्यवस्था थी...पकवान इतने कि ऊंगलियों पर गिना न जा सके...ललीज भोजन से अगर कोई ऊब जाए तो डांस प्लोर पर थिरक कर मस्ती कर सकता था...खाने के बाद रस्म अदायगी और दोस्तों के गुजारिश के बाद मैंने अपनी कमर लचकायी...लेकिन ज्यादा मजा देखने में आ रहा था...बाराती-घराती सब एक रंग में डूब नाच रहे थे... वैसे शादी में होने वाले डांस में मूव्स की गुंजाइश थोड़ी सीमित ही होती है...बचपन से शादी में होने वाले नाच मैंने देखे हैं, उसमें सबसे ज्यादा रिपीटेशन रूमाल डांस का ही होता देखा है...गाना कोई भी चल रहा हो, लोग मुंह रूमाल दबाकर नागिन या नाग तरह नाचने की कोशिश करते हैं...लेकिन अब जमाना बदल गया है...लोग अब डांस में फिल्मी अदाओं को शामिल करने की गुंजाइश बना लेते हैं...लिहाजा, कभी कोई रेल बना रहा था तो कभी कोई दबंग की अकड़ दिखा रहा था...हर किसी अपनी नृत्य भंगिमा थी...लेकिन बात दंबग या फिर रेल गाड़ी तक ही सीमित नहीं रही...मदमस्त बाराती पीपली लाइव तक पहुंच गये थे...डांस प्लोर पर डीजे बजा रहा था—महंगाई डायन खायत जात है- इस गाने पर प्लोर पर शेरवानी, कोर्ट, टाई ओढ़े युवक और जड़ी-गोटे की खूबसूरत और महंगे लंहगे व साड़ियों में लिपटी युवतियां बदहवासी की हद तक ठुमके लगाए जा रहे थे..कोई गाने की मतलब या उसकी संवेदना पर रूकना नहीं चाहता था...उन्हें बस, डांस करने की धून थी...लिहाजा पीपली गांव की दर्द भरी गरीबी की गुहार पर भी ठुमके लगाने में कामयाब हुए...आप आप ही सोचिये महंगाई डायन खात जात में ताली पीटने और सिर धूनने तक की बात तो समझ में आती है...लेकिन दंबग स्टाइल में इस गीत पर ठुमके लगाना क्या संभव होगा....लेकिन डांस प्लोर सब चलता है...क्या अब मुझे कहने की जरूरत है कि नशा शराब में होती तो नाचती बोतल...झुमा देने वाले तत्व गाने की बजाय उसे सुनने वाले में होते हैं...लेकिन बात सिर्फ आधुनिक डांस फ्लोर तक सीमटी नहीं है...कुछ दिन पहने जन्माष्टी में भी यह जुमला चरित्रार्थ होता नजर आया....देवी-देवताओं की भव्य झांकियों से सजे जुलूस में बैंड ताशे वाले भी माहौल को भक्तिमय बना रहे थे...ये बात अलग है कि जो वो बजा रहे थे...उसका भक्ति से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था...सबसे आगे महाराजा बैंड था...उसकी टोली जो धून बजा रही थी...उसके बोल कुछ ये कह रहे थे- छलकाए जा आज की आज की रात...बैंड के पीछे-पीछे भारत माता की झांकी अपनी भव्यता के साथ चली जा रही थी...भारत माता के पीछे थे भगवान शिव, जिनके लिए धुन बजा रहा था गोपाल बैंड---गोपाल बैड के धून कुछ ऐसी आवाजे निकाल रहे थे-मेरा नाम चीन ची...रात चांदनी मैं और तू...बोलो मिस्टर हाऊ डू यू डू...अब इन गाने में आप भक्ति का रस अगर ढुंढगे तो ये काम शायद भगवान ढुंढने से ज्यादा कठिन होगा...बहरहाल, भक्ति, गानों में नहीं बल्कि भक्त के मन में होती है...ठीक उसी तरह नशा शराब में नहीं बल्कि पीने वालों में होता है...</span>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-89846441739237440622010-09-20T10:45:00.009+05:302010-09-20T12:41:51.569+05:30ख्वाहिशों की लड़ियां बुन...<p align="center"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dwFohjXlvUjhsmFRyQRDHnOKznrcBXoS_huScJVe6x76NToDkMW9LBxfFdBeyW5hQTkKNOPZzlyRsAenquyqw' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe><br /><br /><span style="font-size:130%;"><strong><span style="color:#000000;">अपने शब्दों को सुर में ढलते देखना, बेहद सुखद अनुभव है...</span></strong> </span></p>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-25475586917423591492010-09-13T10:51:00.000+05:302010-09-13T10:53:19.275+05:30अंतिम दिनों मेंकभी-कभी हम एक लंबे अरसे तक इंतजार करते हैं, क्यों मालूम नहीं...जबकि चीजें हमारी पहुंच में होती है-छू लेने के फासले पर-फिर भी हाथ नहीं बढ़ाते हम...एक बार बहन की शादी के सिलिसिले में पटना गया था...मैं शादी बित जाने के बाद भी पटना में था...अच्छा लग रहा था अपने लोगों के बीच वहां रहना ...<br />अपने प्रोफेसर की लाइब्रेरी और वहां सांसे ले रहे समाजवादी आंदोलन के इतिहास को टटोलना...सर बातें करना, उनके जीये को फिर जीना...अचानक लगा,एक बंद कमरे में सर ऊब गए होंगे..सर शारीरिक रूप से कमजोर हो गए...लिहाजा, उनसे कह पड़ा- सर,कल हम गुरुद्वारे चलते हैं...अगली सुबह हम हरमंदिर में थे बैठे थे, चर्चा कर रहे थे सिख पंथ के वजूद पर...अचानक बीच में आ बैठी चुप्पी के बीच मैंने सर से कहा-पिछले 9 सालों से यहां आने की सोच रहा था....<br />सर का जवाब था मैं सन् 77 से यहां आना चाहता था...हम दोनों इसके बाद चुप थे, क्योंकि दोनों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि हम यहां पहले क्यों नहीं आए...इंतजार क्यों कर रहे थे...अगर जवाब था भी , तो हम बयां करने की स्थिति में नहीं कर थे...सर नास्तिक की तरह जीते मैंने देखा है, पूरी उम्र वो कभी मंदिर नहीं गए और ना किसी देवी-देवता की मूर्ति के आगे मैंने उन्हें झुकते हुए देखा था...लेकिन गुरुद्वारे से निकलते वक्त वो दोबारा मंदिर की तरफ मुड़े और सजदे में किसी तरह छड़ी का सहारा लेकर झुके....जिस इंसान को मुझे गोद का सहारा देकर उठाना या बैठना पड़ता है...चलते वक्त कांधे का सहारा देना पड़ता है...वो नास्तिक इंसान गुरुद्वारा से निकलते वक्त छड़ी के सहारे खुद से दोबारा झुकता हैं...मेरा सहारा भी नहीं लेता...ये मेरे लिए अलग एहसास था...उन्हें देखकर यही लगा कि अंतिम दिनों में लोग शायद जिंदगी की तमाम चीजों को अपना लेते हैं....समेटे लेते है उन सभी चीजों को जो पहले उनसे छूट गया होता है...नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-71928099980584002622010-08-23T16:07:00.002+05:302010-08-23T16:10:03.204+05:30रक्षाबंधन की शुभकामनाएं<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheow_cS-MhWY6BDTZbYwApLzBLHyGA8CAd3NIOdrBe0IV8Gty_0p4erN0B6Eo7uSDf_7tMaLpqERHFzPZlRWBV1ZdcHWWbNmjAzUzxaeOa0JIp5fYwifv3zysVTRW3JDzaVFUm8XKiB6Dl/s1600/Rakhi.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheow_cS-MhWY6BDTZbYwApLzBLHyGA8CAd3NIOdrBe0IV8Gty_0p4erN0B6Eo7uSDf_7tMaLpqERHFzPZlRWBV1ZdcHWWbNmjAzUzxaeOa0JIp5fYwifv3zysVTRW3JDzaVFUm8XKiB6Dl/s320/Rakhi.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5508553240008851778" /></a><br /><br />ये डोर युगों से रक्षा का सूत्र रहा है<br />पहली बार देवराज इंद्र को उनकी पत्नी इंद्राणी ने <br />श्रावण पूर्णिमा पर बांधी थी ये डोर<br />जब वो लड़े थे असुरों से <br />वक्त बदला, बांधने और बंधवाने वाले बदले <br />पर ये डोर आज भी रक्षा का सूत्र है<br />बलाओं से बचाता है भाई और बहन को <br />बनाए रखता है प्रेम के इस अटूट बंधन को<br />रक्षाबंधन की शुभकामनाएंनीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-82219056824854633012010-07-25T08:54:00.002+05:302010-07-25T09:08:45.841+05:30नियति भी कुछ हैएक डोर <br />कई गिरहें <br /><br />सुलझाने की असंख्य कोशिशें<br /><br />धटता-बढता अधूरापन<br /><br />मौत का डर<br /><br />जिंदगी की आस<br /><br />सपनों की प्यास<br /><br />ख्वाहिशों की तलाश<br /><br />हम क्यों भूल जाते हैं <br /><br />नियति भी कुछ है<br /><br />इन सब के दरम्याननीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-70876162850150253722010-06-14T19:03:00.000+05:302010-06-14T19:05:47.635+05:30दुबे जी का जागरणपिछली सर्दियों में अनायास दुबे जी से मुलाकात हुई । एक राष्ट्रीय अखबार में दुबे जी पत्रकार हैं और बड़े पद पर हैं । बड़े पद पर हैं इसलिए उन्हें बड़ा पत्रकार भी माना जाता है । खैर, तब मेरे लिए बेरोजगारी का दौर था और मैं एक पुराने दोस्त से मिलने अखबार के ऑफिस गया था । बात ही बात में पता चला कि अगर दुबे जी प्रसन्न हो गए तो मुझे इस अखबार में नौकरी मिल सकती है । मेरे मित्र ने मुझे बगैर किसी सूचना या सावधानी के दुबे जी के सामने छोड़ दिया। चेहरे पर पनपी हुईं दाढ़ी से दुबे जी के प्राक ऐतिहासिक होने का भय होता था। कपड़े पहनने का अंदाज साफ बता रहा था कि दुबे जी को पैंट शर्ट जैसी आधुनिक पोशाक से बड़ी कोफ्त है। दुबे जी जब मुझसे मिले उस वक्त उन्होने अपने पिचके हुए मुंह को पान के बीड़े से फुला रखा था। घड़ी दो घड़ी में उनका हाथ शरीर के अलग अलग अंगों को खुजाने में लग जाता था । खैर दुबे जी ने मुझे हिकारत से और मैनें दुबे जी को बड़ी हैरत से देखा। दुबे जी ने पूछा- “कहां काम करते थे”<br />मैनें कहा – इलेक्ट्रॉनिक में था सर<br />दुबे जी मुझे दोबारा ऊपर से नीचे तक देखा । फिर पूछा - “अब अखबार में क्यों”<br />असली बात छुपाकर मैने कहा – सर वहां शोर बहुत है और काम कम ।<br />“लेकिन यहां दाम कम है भाई” – दुख और व्यंग्य को फेटकर दुबे जी ने कहा । कुछ काम और बेकाम के सवाल पूछकर दुबे जी ने मेरे हाथ में एक खबर पकड़ाई और कहा – “बन्धुवर इस खबर पर जरा स्क्रीप्ट लिख दें”<br />खबर पंजाब के एक गांव की थी- एक गधा अपनी मेहनत से मालिक के खेतों को आबाद करता है और मालिक का परिवार एक साल से बड़ी खुशहाल जिन्दगी गुजार रहा है ।<br />गधे और उसकी बेचारगी को किसान की चालाकी से जोड़कर मैनें एक स्क्रीप्ट लिख मारी। लेकिन हल खींचते गधे का बिम्ब हास्य से इतना भरपूर था कि भाषा जरा मजाकिया हो गयी । और यहीं बात दुबे जी को अखर गईं।<br />“अरे ये बड़ा संवेदनशील मुद्दा है भाई...गधे की मेहनत को आप मजाक समझते हैं...आपको इस देश के सिस्टम और सरकार पर लिखना चाहिए...आखिर सरकार की नजर गधों की दुर्दशा पर क्यों नहीं जाती...आपने उसकी मासूमियत पर ध्यान दिए बगैर उसकी दशा पर व्यंग्य लिख दिया है...कमाल करते हैं आप..."<br />भावावेश में दुबे जी और न जाने क्या बोलते, लेकिन मुंह के पान ने ज्यादा बोलने नहीं दिया । दो-चार बार मुंह दाएं-बाएं हिलाकर चौबे जी ने कहा – नहीं चलेगा भाई। टीभी ने भाषा- विचार, खबर की समझ , सबका बंटाधार कर दिया है । जाइये भाई अखबार आपके बस का नहीं”-<br />इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता दुबे जी पान थूकने के लिए उठ गए और फिर देर तक नहीं दिखे। अपनी पढ़ाई - लिखाई को लानत देते हुए मैनें भी अखबार के ऑफिस को आखिरी प्रणाम किया। साथ ही तीसरी कसम के हीरामन की तरह पहली कसम खायी- आज के बाद किसी भी गधे को लेकर मजाक नहीं करूंगा ।<br /><br />खैर कुछ दिन पहले दुबे जी से दूसरी बार मुलाकात हो गयी । इसबार एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल में। दुबे जी बड़े ही गर्मजोशी से मिले । मैनें पूछा – सर आप यहां ?<br />“हां न्यूज हेड से मुलाकात करने आया था...दरअसल एक तरह से इंटरव्यू है...सर ने भरोसा दिया है कि इस बार कुछ करेंगे...लगता है आप भी नौकरी के लिए आएं हैं”- दुबे जी बोले ।<br />मैने कहा- “मेरी बात जाने दीजिए, आप कैसे टीभी में काम करेंगे...यहां तो खटारा लोग काम करते हैं”<br />दुबे जी बोले –“आपकी बात ठीक है , लेकिन क्या करें भाई...जरूरत इतनी है और उतने पैसे से काम नहीं चलता...आपकी भाभीजी ने जीना दुभर कर रखा है...समझ लीजिए कि बड़ी दिक्कत है ...और इसमें क्या है...जैसी ठसक के साथ प्रिंट में काम किया,वैसे ही इलेक्ट्रॉनिक को भी हांक ले चलेंगे...बल्कि हमारे जैसे लोगों के आने से आपलोगों की भाषा-वाषा ठीक हो जायेंगी...हें-हें-हें...और रही बात खबर की तो वो दोनों जगह से नदारद है-क्या हिन्दी के अखबार और क्या हिन्दी के चैनल...अब तो कमाना- खाना है”<br />मैनें मन ही मन दुबे जी प्रणाम किया। उनके जागरण पर शुभकामनाएं दी और मिलते रहने का वादा करके अपनी राह पकड़ी।प्रभात रंजनhttp://www.blogger.com/profile/04691009431273824905noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-21471469828277199352010-06-11T14:17:00.001+05:302010-06-11T14:23:44.517+05:30कोई छोटी कर दे मेरी जिंदगीजिंदगी बहुत लंबी लगती है...<br />उस रोज छोटी लगी थी<br />खिड़की के बाहर परिदों सी उड़ती हुई...<br />बजड़ों सी आसमान में बहती हुई<br />न आसमा बदला...न बदली है खिड़की<br />फिर कैसे लंबी हुई ये जिंदगी<br />क्या था वो जो इसे खिंच कर लंबा कर गया<br />कोई छोटी कर दे मेरी जिंदगी<br />अंदर वैसे भी सिमटी हुई है<br />बाहर से भी कतर दे कोई....नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-4628070916688867332010-05-29T13:58:00.005+05:302010-07-25T10:53:01.339+05:30आओ गूथ जाए...मेरी नई कोशिश<iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dygVCNWmBF5kZcqMXVo-RsJ6UU3cO5ybklL1oEXVuqphmK9lAIv_XpTDCaj1VQ0Ffk3SC55GuPiH2zkXqocEw' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-47754210577312350632010-05-29T10:26:00.008+05:302012-05-30T14:39:23.686+05:30सात साल बाद पोस्टर पर मिली...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgE1Jj4SsHj5IbQY3xyGIoYysKTxMRNm1Wr2jvZKkbeXLYPWZJ6RpgueRGdnP2HYuY_u0bTJqahp-0P-ROjRvJQnfobhdhlAXJnHqMZofFDPkWRWRAo62AX8Hnj1c7iwuPWsGD-OT2ctHxb/s1600/c7d01bee86dd7ce6_m.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgE1Jj4SsHj5IbQY3xyGIoYysKTxMRNm1Wr2jvZKkbeXLYPWZJ6RpgueRGdnP2HYuY_u0bTJqahp-0P-ROjRvJQnfobhdhlAXJnHqMZofFDPkWRWRAo62AX8Hnj1c7iwuPWsGD-OT2ctHxb/s320/c7d01bee86dd7ce6_m.jpg" width="320" /></a></div>
<strong>यूं तलाश कभी खत्म नहीं हुई थी...पर मैं उसे उन जगहों पर ढूंढ़ने भी नहीं गया था...जहां वो मिल सकती थी...मुझे तो उससे वैसी ही जगह मिलना था...जहां हम मिले या फिर मिल सकते थे...क्योंकि दोस्ती के कुछ कायदे होते हैं, कुछ उसूल होते हैं... कुछ गवाह होते हैं...वो निर्जीव चीजें ही क्यों न हो...रंगीन चासनी में डूबे बर्फ के गोले का एक दायां हिस्सा, सर्द सड़क की सुनसान हवा..दीवारों पर टंगे पोस्टर या आइना... या फिर मैगी की मैगिली खुशबू... इन चीजों के बगैर दोस्तों से मिलना अजनबी चेहरों से बेवजह टकराने भर होता है...ऐसे में पुराने दिन पूरी तरह लौटते नही...दिन नए होते हैं बिल्कुल...और तलाश आखिरकार बेजा और जिंदगी अधूरी ... जिंदगी अगर मुक्तसर होती तो मैं तलाश नहीं करता है...लेकिन ऐसा है नहीं ...जिंदगी लंबी है...पुराने दोस्तों के बगैर तो ये और भी लंबी हो जाती है...हम सभी की जिंदगी कई टुकड़ों में इधर-उधर बंटती जाती है...कभी कभार उन्हें इकट्ठा करने का मन करता है ...सो ढूंढ़ने लगते हैं जिंदगी के उन टुकड़ों को जो किसी मुहाने पर बहकर हमसे अलग हो गए होते हैं...ऐसे में अपने जिंदगी के टुकड़ों को तलाशना कहीं से भी गलत नहीं लगता है...अब मालूम नहीं मेरी तलाश पूरी होगी या नहीं...मैं उन सारे टुकड़ों को वापस पा सकूंगा, जिसे वो लोग अपने साथ ले गये थे...जो आये तो अपनी मर्जी से थे और गये भी अपनी मर्जी से....पर इतना जानता है...मैं तलाशता रहूंगा...और यूं कभी पोस्टर पर तो कभी कहीं और उन से मिलता रहूंगा...उन्हें बताए बगैर....ताकि उनके होने और न होने के बीच तलाश के पुल पर जिंदगी चलती रहे...</strong></div>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-1733376658602240902008-10-17T22:29:00.009+05:302010-07-28T09:11:12.541+05:30कुछ लम््हों और कुछ लोगों की बातें<p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;color:#ff0000;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><span style="color:#ff0000;"></p></span></span><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">पता नहीं कितनी चीजें याद आएगी</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">कभी अासमान ओढ़कर अचानक टकराना याद आएगा</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">तो कभी वे सुबहें याद आएंगी</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">वो काफी की गुजारिशें याद आएंगी</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">उसका एक दिन पूरा होना याद आएगा</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">वो छुपकर देखना याद आएगा</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">खुदा के इबादतों से पल याद आएगे</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">एक पांव की पायल याद आएगी</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">वो राधा का इंतजार याद आएगा</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">वो<span style="FONT: 18px Lucida Grande"> </span>खुदा<span style="FONT: 18px Lucida Grande"> </span>याद<span style="FONT: 18px Lucida Grande"> </span>आएगा</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">खुदा न बनने की बातें याद आएगी</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:85%;">सिर्फ याद ही आएंगी, सिर्फ <span class="">याद....</span></span></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p></p><p></p><p></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">अपनी<span style="FONT: 18px Helvetica"><i> </i></span>मुस्कुराहट के पीछे </span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">कितना कुछ छिपा लेते हैं हम</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">दर्द, एहसास और ख्याल</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">और न जाने क्या क्या</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">बगैर ये सोचे </span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">आंखे आइना होती हैं</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">हमारे जज्बातों की</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#3366ff;"><span style="font-size:85%;">हमारे ख्यालों की</span></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p></p><p></p><p></p><p></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">कभी कॉफी टेबल पर </span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">तो कभी रेस्तरां में</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">हम बीतते हैं</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">कभी सड़कों पर </span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">तो कभी ढाबे पर</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">हम जीते हैं</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">कभी रात तो </span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">कभी सुबहों तक</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">हम साथ होते हैं</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">अपनी तन्हाई</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#33cc00;"><span style="font-size:85%;">अपनी रुसबाई लिए</span></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p></p><p></p><p></p><p></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc0000;"><span style="font-size:85%;">तुम्हारी आंखों में झांकने को जी चाहता है</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc0000;"><span style="font-size:85%;">वो जो खारा पानी बर्फ बन गया है तुम्हारी आंखों में</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc0000;"><span style="font-size:85%;">उसे पिघलाने को जी चाहता है</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc0000;"><span style="font-size:85%;">एक घूंट पीने को जी चाहता है</span></span></p><p></p><p></p><p></p><p></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">बकबक करती है</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">दूसरों को कुछ समझाती</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">चेहरे पर हल्की सी फीकी मुस्कराहट के पीछे</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">अपने गम को छुपाती</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">अपनी दुनिया में सिमटी</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">चुपके से </span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">और की दुनिया में झांकती</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">वो लड़की कुछ कहती है</span></span></p><p style="MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="color:#cc33cc;"><span style="font-size:85%;">अपनी खामोशी से</span></span></p><p style="MIN-HEIGHT: 29px; MARGIN: 0px; FONT: 18px Devanagari MT; TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:85%;"><br /></span></p>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-44436618049641808492008-10-04T17:26:00.001+05:302008-10-04T17:26:51.494+05:30बस यूं ही ख््याल आया<p style="margin: 0.0px 0.0px 0.0px 0.0px; font: 16.0px Devanagari MT">हम कभी जन्मे थे...?</p> <p style="margin: 0.0px 0.0px 0.0px 0.0px; font: 16.0px Devanagari MT">जिंदगी का एक और बसंत देखा मैंने....खूशनसीब हूं मैं क्योंकि जानता हूं इस दुनिया में हजारों लोग ऐसा करने से पहले ही दुनिया से विदा हो जाते हैं....अजीब एहसास होता है खुद के होने का...दिन तो दिन होते है...हर दिन अपने अंदर कुछ गिने-गिनाए घंटे समेटे होता है...जन्मदिन भी उन्हीं दिनों में से एक होता है...लेकिन हमारा जन्म िदन हमारे लिए स्पेशल हो जाता है...जबकि जन्म लेने के एहसास हमारे अंदर नहीं होता है....लाख चाहकर भी हम महसूस नहीं कर सकते कि जन्म लेते वक्त हमने क्या महसूस किया था,क्या सोचा था, कैसे हंसे थे...हकीकत तो ये है कि खुद कि बनावट देखकर या खुद के होने के बीच इस बात को जेहन में उतारना मुश्किल लगता है कि हम कभी जन्में होंगे...हमे लगता है हमारे जन्म की घटन हमसे जुड़ी हुई नहीं है... वो हमारे साथ हुई ही नहीं, हमारा जन्म कोई आकाशीय घटना थी, जिसके अब हमारा सरोकारो नहीं रह गया...मैं सच की बात नहीं कर रहा हूं, ये सच है कि हम सब जन्म लेते हैं, इस सच्चाई को नकारा भी नहीं जा सकता है....मैं बात कर रहा हूं खुद के जन्म लेने के एहसास की...इस मामले में हमारा चेतन बिल्कुल खाली होता है... अगर कुछ चीजे हमारी चेतन में होती है तो वो दूसरो की कही बाते और जो बड़े होकर अपने में जो सच्चाई देखते हैं अपने जीवन में...फिर ऐसे में जन्मदिन मनाना बेतुका लगता है...अगर मस्ती करनी है, जीवन का आनंद लेना है तो कई और तरीके हैं, उधार की एहसासों और दुनिया के बने बनाए फ्रेम में जीने से शायद ज्यादा बेतहर...</p>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7720177430066771101.post-26348903309627959842008-09-15T22:48:00.000+05:302008-09-15T22:50:27.406+05:30शिवराज पाटिल जी के नाम...<p style="text-align: justify;margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal normal 16px/normal 'Devanagari MT'; min-height: 26px; "><br /></p> <p style="text-align: justify;margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal normal 16px/normal 'Devanagari MT'; min-height: 26px; "><br /></p> <p style="text-align: justify;margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal normal 16px/normal 'Devanagari MT'; ">आदरणीय<span style="font: 16.0px Helvetica"> </span>शिवराज पाटिल जी....जिस तरह से कुछ खबरियां चैनलों ने अापके सफाई पसंद व्यक्तित्व पर उंगली उठाने की हिमाकत की है...उससे मैं बेहद आहत हुआ हूं...आखिर क्या बुराई अगर हमारे देश के गृहमंत्री एक दिन में तीन बार कपड़े बदलते हैं. वो भी तो देश के दूसरे नेताओं के तरह ही हैं. अगर दूसरे नेता डिजानर सूट पहन सकते हैं तो हमारे देश के गृहमंत्री को भी ये आजादी होनी चाहिए कि वो एक दिन में तीन बार कपड़े बदल सके...दरअसल खबरियां चैनल इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि इन दिनों देश का हर नेता सफाई पसंद हो गया है...खबरियां चैनल अगर देश के नेताओं के लिबास पर नजर ठीक से डाले तो उन्हें हर नेता सफेदी और सफाई का पैगाम लिए नजर आएगा...गृहमंत्री के सफाई पसंद आदत पर उंगली उठाने से पहले न्यूज चैनल ये क्यों भूल गए कि हमारे गृहमंत्री भी सफाई पसंद नेताओं की जमात से तालुल्क रखते हैं. फिर उनके कपड़ो पर पाबंदी क्यों. दरअसल शिवराज पाटिल जी ये खबरियां चैनल आपके व्यक्तित्व को ठीक से समझ नहीं सके हैं...वो नहीं जानते विकट से विकट अगर परिस्थियों में अापके चेहरे पर भावशुन्यता विखरी रहती है तो उसका राज क्या है..सीधी सी बात है अाप देश के गृहमंत्री हैं और गृहमंत्री की जिम्मेदारियां निभाने के लिए इमोशनल होने की गुंजाइश नहीं होती. अगर विस्फोट में मारे गए लोगों के लिए अापके आंखों में आंसू आ जाएगा या फिर संवेदना नजर आ जाएगी तो आतंकवादियों को लगेगा कि आप कमजोर पड़ गए हैं जिसके बाद उनका हौंसला और बढ़ जाएगा..खबरियां चैनल ये भी नहीं समझ पाते कि कपड़े बदलने से इंसान तरोताजा रहता है और उसका दिमाग ठीक से काम करता है. विस्फोट की साजिश रचने वाले को पकड़ने के लिए जरूरी है कि दिमाग तरोताजा रहे...अाप 13 तारीख के दिन तीन बार कपड़े बदलकर वही तो कर रहे थे आप. आखिर ये खबरियां चैनल समझते क्या अपने अाप को...किसी और के घर में झांकने से पहले उन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए...जिस टीवी एंकर को देखो वो चेहरा पर लीपापोती करके टीवी पर नजर आता है...खबर चाहे जैसी भी हो...हालांकि इसमें कुछ पत्रकारों को अलग ऱखा जा सकता है, जो चेहरे पर धूल पसीना लिए रिपोरिंग करते नजर आते हैं िकसी बड़े हादसे के समय...ये खबरियां चैनल न तो अापको समझ पाएं हैं और ना ही िहन्दुस्तािनयों को....आखिर समझेंगे भी कैसे...पत्रकारों की आधी जमात तो हिन्दुस्तानियों की उस जमात से वास्ता रखती है िजसका सफाई से कुछ खास लेना देना नहीं होता....गरीबी और मुफलिसी की जिंदगी जीने वाले और उसके बारे में लिखने वाले ये पत्रकार क्या जाने कि जिंदगी में सफाई कितनी जरूरी चीज है...वो जानते ही नहीं हिन्दुस्तान बदल गया है, पूरा नहीं बदला तो एक छोटा सा हिस्सा जरूर बदल चुका है जो िहन्दुस्तानी संवेदना को कब का दफन कर चुका है... </p><p style="text-align: justify;margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal normal 16px/normal 'Devanagari MT'; ">नीरज सारांश</p>नीरज सारांशhttp://www.blogger.com/profile/09699100791522293419noreply@blogger.com0