आओ बातें करे

Friday, October 17, 2008

कुछ लम््हों और कुछ लोगों की बातें

पता नहीं कितनी चीजें याद आएगी

कभी अासमान ओढ़कर अचानक टकराना याद आएगा

तो कभी वे सुबहें याद आएंगी

वो काफी की गुजारिशें याद आएंगी

उसका एक दिन पूरा होना याद आएगा

वो छुपकर देखना याद आएगा

खुदा के इबादतों से पल याद आएगे

एक पांव की पायल याद आएगी

वो राधा का इंतजार याद आएगा

वो खुदा याद आएगा

खुदा न बनने की बातें याद आएगी

सिर्फ याद ही आएंगी, सिर्फ याद....


अपनी मुस्कुराहट के पीछे

कितना कुछ छिपा लेते हैं हम

दर्द, एहसास और ख्याल

और न जाने क्या क्या

बगैर ये सोचे

आंखे आइना होती हैं

हमारे जज्बातों की

हमारे ख्यालों की



कभी कॉफी टेबल पर

तो कभी रेस्तरां में

हम बीतते हैं

कभी सड़कों पर

तो कभी ढाबे पर

हम जीते हैं

कभी रात तो

कभी सुबहों तक

हम साथ होते हैं

अपनी तन्हाई

अपनी रुसबाई लिए



तुम्हारी आंखों में झांकने को जी चाहता है

वो जो खारा पानी बर्फ बन गया है तुम्हारी आंखों में

उसे पिघलाने को जी चाहता है

एक घूंट पीने को जी चाहता है



बकबक करती है

दूसरों को कुछ समझाती

चेहरे पर हल्की सी फीकी मुस्कराहट के पीछे

अपने गम को छुपाती

अपनी दुनिया में सिमटी

चुपके से

और की दुनिया में झांकती

वो लड़की कुछ कहती है

अपनी खामोशी से


Saturday, October 4, 2008

बस यूं ही ख््याल आया

हम कभी जन्मे थे...?

जिंदगी का एक और बसंत देखा मैंने....खूशनसीब हूं मैं क्योंकि जानता हूं इस दुनिया में हजारों लोग ऐसा करने से पहले ही दुनिया से विदा हो जाते हैं....अजीब एहसास होता है खुद के होने का...दिन तो दिन होते है...हर दिन अपने अंदर कुछ गिने-गिनाए घंटे समेटे होता है...जन्मदिन भी उन्हीं दिनों में से एक होता है...लेकिन हमारा जन्म िदन हमारे लिए स्पेशल हो जाता है...जबकि जन्म लेने के एहसास हमारे अंदर नहीं होता है....लाख चाहकर भी हम महसूस नहीं कर सकते कि जन्म लेते वक्त हमने क्या महसूस किया था,क्या सोचा था, कैसे हंसे थे...हकीकत तो ये है कि खुद कि बनावट देखकर या खुद के होने के बीच इस बात को जेहन में उतारना मुश्किल लगता है कि हम कभी जन्में होंगे...हमे लगता है हमारे जन्म की घटन हमसे जुड़ी हुई नहीं है... वो हमारे साथ हुई ही नहीं, हमारा जन्म कोई आकाशीय घटना थी,  जिसके अब हमारा सरोकारो नहीं रह गया...मैं सच की बात नहीं कर रहा हूं, ये सच है कि हम सब जन्म लेते हैं, इस सच्चाई को नकारा भी नहीं जा सकता है....मैं बात कर रहा हूं खुद के जन्म लेने के एहसास की...इस मामले में हमारा चेतन बिल्कुल खाली होता है... अगर कुछ चीजे हमारी चेतन में होती है तो वो दूसरो की कही बाते और जो बड़े होकर अपने में जो सच्चाई देखते हैं अपने जीवन में...फिर ऐसे में जन्मदिन मनाना बेतुका लगता है...अगर मस्ती करनी है, जीवन का आनंद लेना है तो कई और तरीके हैं, उधार की एहसासों और दुनिया के बने बनाए फ्रेम में जीने से शायद ज्यादा बेतहर...