पता नहीं कितनी चीजें याद आएगी
कभी अासमान ओढ़कर अचानक टकराना याद आएगा
तो कभी वे सुबहें याद आएंगी
वो काफी की गुजारिशें याद आएंगी
उसका एक दिन पूरा होना याद आएगा
वो छुपकर देखना याद आएगा
खुदा के इबादतों से पल याद आएगे
एक पांव की पायल याद आएगी
वो राधा का इंतजार याद आएगा
वो खुदा याद आएगा
खुदा न बनने की बातें याद आएगी
सिर्फ याद ही आएंगी, सिर्फ याद....
अपनी मुस्कुराहट के पीछे
कितना कुछ छिपा लेते हैं हम
दर्द, एहसास और ख्याल
और न जाने क्या क्या
बगैर ये सोचे
आंखे आइना होती हैं
हमारे जज्बातों की
हमारे ख्यालों की
कभी कॉफी टेबल पर
तो कभी रेस्तरां में
हम बीतते हैं
कभी सड़कों पर
तो कभी ढाबे पर
हम जीते हैं
कभी रात तो
कभी सुबहों तक
हम साथ होते हैं
अपनी तन्हाई
अपनी रुसबाई लिए
तुम्हारी आंखों में झांकने को जी चाहता है
वो जो खारा पानी बर्फ बन गया है तुम्हारी आंखों में
उसे पिघलाने को जी चाहता है
एक घूंट पीने को जी चाहता है
बकबक करती है
दूसरों को कुछ समझाती
चेहरे पर हल्की सी फीकी मुस्कराहट के पीछे
अपने गम को छुपाती
अपनी दुनिया में सिमटी
चुपके से
और की दुनिया में झांकती
वो लड़की कुछ कहती है
अपनी खामोशी से