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Wednesday, October 13, 2010

भारतीय राजनीति की अनमोल विरासत...







लोकनायक जय प्रकाश कहिये या जेपी या भारतीय राजनीति की अनमोल विरासत...जेपी की लौ से क्रांति की जो मशाल जली , उसने देश को हिला दिया, बल्कि युवाओं को राजनीति धर्म का पाठ भी पढ़ाया...लोकनायक जय प्रकाश नारायण ...एक ऐसा नाम है जिसने सत्तर के दशक में भारतीय राजनीति और समाज की दिशा बदल दी... जयप्रकाश नारायण लोकनायक माने गए, क्योंकि इनके विचार के हर कतरे में जनता की बात थी...अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के विकास की बात थी...एक संपूर्ण बदलाव की बात थी, जिसके केंद्र में कोई और नहीं बल्कि देश का आम नागरिक था...चाहे वो स्वतंत्रता संग्राम का दौर रहा हो या फिर आजादी के बाद का भारत, लोकनायक जयप्रकाश नारायण हमेशा ही सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं...गांधी से लेकर नेहरू तक जेपी के जज्जे और सर्घष के साक्षी रहे....11 अक्टूबर 1902 को बलिया के सिताबदियारा में जन्मे इस महान शख्सियत ने समता, स्वतंत्रता जैसे मूल्यों पर आधारित समाज की संरचना के लिए संघर्ष की जो मिसाल पेश की वो भारतीय राजनीति में दुर्भल है... जेपी क्रान्ति का सूत्रपात भारत के गांवों से करना चाहते थे... उनका मानना था कि गांव समाज की समस्याओं का समाधान सम्पूर्ण क्रान्ति का सबसे बड़ा मकसद है...यही वजह थी कि रचना, संघर्ष, शिक्षण और सांगठनिक प्रक्रिया से वो गांवों को बदलना चाहते थे...उनका माना था कि जब गांव बदलेंगे तो शहर खुद ब खुद बदल जाएंगे...जेपी के लिए विचार से बढ़कर कोई न था... सोच समाजवादी और तेवर से माक्सवादी जेपी का ही ये करिश्मा था कि संपूर्ण क्रांति की अलख जगाने के लिए लाखों युवा अपना सबकुछ छोड़कर उनके पीछे निकल पड़े...देशव्यापी भ्रष्टाचार के खिलाफ 1974 में विरोध की जो आंधी जय प्रकाश के नेतृत्व में उठी , वो आपातकाल की बंदिशों और जुल्मों को अपने साथ उड़ा ले गयी है...वो जेपी का ही जादू था, जिसके बल पर जनता ने पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार को देश की कमान सौंपी ... ...जेपी सिर्फ संपूर्ण क्रांति के ही सूत्रधार नहीं थे, बल्कि मौजूद राजनीति के धुरंधरो को गढ़ने में उनकी एक गुरु की तरह महत्वपूर्ण भूमिका रही..पिछले चार दशक में जो चेहरे भारतीय राजनीति की तस्वीर बने या फिर राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, वो कहीं न कहीं जेपी आंदोलन से निकले हैं...पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान जैसे नेताओँ के या जेपी प्रेरणास्रोत्र रहे हैं या फिर उन्होंने जेपी आंदोलन से अपनी राजनीति शुरू की...खास तौर से बिहार की राजनीति तो आज पूरी तरह जेपी के चेलों के हवाले हैं... बिहार में पक्ष विपक्ष और निष्पक्ष ... हर कहीं जेपी के लोग हैं...ये बात और है कि संपूर्ण क्रांति की मशाल कब की बुझ चुकी है…..जिन मूल्यों की राजनीति जेपी करते थे उन मूल्यों को सत्ता की चकाचौंध में उनके चेले भूल गये...जेपी के विद्यार्थियों में सबसे पहला नाम है लालू प्रसाद यादव का...छात्र आंदोलन में जेपी के लिए लाठी खाने वाले लालू यादव बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री बने...लेकिन जेपी के इस विद्यार्थी की दूर्दशिता बिहार की दुर्दशा वजह बनी है... बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भी जेपी स्कूल के हैं...यानि बिहार जेपी का एक चेला शासन चला रहा है तो दूसरा चेला विपक्ष संभाल रहा है...सुशील कुमार मोदी, शिवानंद तिवारी, रामविलास पासवना जैसे नेताओं ने भी जेपी आंदोलन से अपनी राजनीति चमकायी थी..इन नेताओं की राजनीति चमक तीन दशक बाद भी बरकरार है, लेकिन इनकी चमक बिहार के लोगों के काम नहीं आई है...1977 के छात्र आन्दोलन का नेतृत्व जब लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने संभाला तब उनका मकसदा आंदोलन के जरिए व्यवस्था परिवर्तन करना था...लेकिन जेपी के चेले व्यवस्था परिवर्तन के बजाय सत्ता के समीकरण में यकीन रखते हैं...यही वजह है अमीरी-गरीब, जात पात जैसी सामाजिक बुराइयो के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले जेपी के ये चेले जात पात को ही अपनी राजनीति का आधार बना लिया ...जेपी के चेलों के होते हुए है अगर बिहार का नवनिर्माण नहीं हो सका इसे या जेपी के विचारों की विफलता कहा जाएगा या फिर उनके चेलों की व्यक्तिगत असफलता...जेपी के इन चेलों को अंदर एक बार जरूर झांकर देखना चाहिए... और सोचना चाहिए कि जेपी अगर होते तो क्या कहते....