Saturday, May 29, 2010
सात साल बाद पोस्टर पर मिली...
यूं तलाश कभी खत्म नहीं हुई थी...पर मैं उसे उन जगहों पर ढूंढ़ने भी नहीं गया था...जहां वो मिल सकती थी...मुझे तो उससे वैसी ही जगह मिलना था...जहां हम मिले या फिर मिल सकते थे...क्योंकि दोस्ती के कुछ कायदे होते हैं, कुछ उसूल होते हैं... कुछ गवाह होते हैं...वो निर्जीव चीजें ही क्यों न हो...रंगीन चासनी में डूबे बर्फ के गोले का एक दायां हिस्सा, सर्द सड़क की सुनसान हवा..दीवारों पर टंगे पोस्टर या आइना... या फिर मैगी की मैगिली खुशबू... इन चीजों के बगैर दोस्तों से मिलना अजनबी चेहरों से बेवजह टकराने भर होता है...ऐसे में पुराने दिन पूरी तरह लौटते नही...दिन नए होते हैं बिल्कुल...और तलाश आखिरकार बेजा और जिंदगी अधूरी ... जिंदगी अगर मुक्तसर होती तो मैं तलाश नहीं करता है...लेकिन ऐसा है नहीं ...जिंदगी लंबी है...पुराने दोस्तों के बगैर तो ये और भी लंबी हो जाती है...हम सभी की जिंदगी कई टुकड़ों में इधर-उधर बंटती जाती है...कभी कभार उन्हें इकट्ठा करने का मन करता है ...सो ढूंढ़ने लगते हैं जिंदगी के उन टुकड़ों को जो किसी मुहाने पर बहकर हमसे अलग हो गए होते हैं...ऐसे में अपने जिंदगी के टुकड़ों को तलाशना कहीं से भी गलत नहीं लगता है...अब मालूम नहीं मेरी तलाश पूरी होगी या नहीं...मैं उन सारे टुकड़ों को वापस पा सकूंगा, जिसे वो लोग अपने साथ ले गये थे...जो आये तो अपनी मर्जी से थे और गये भी अपनी मर्जी से....पर इतना जानता है...मैं तलाशता रहूंगा...और यूं कभी पोस्टर पर तो कभी कहीं और उन से मिलता रहूंगा...उन्हें बताए बगैर....ताकि उनके होने और न होने के बीच तलाश के पुल पर जिंदगी चलती रहे...
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