जिंदगी बहुत लंबी लगती है...
उस रोज छोटी लगी थी
खिड़की के बाहर परिदों सी उड़ती हुई...
बजड़ों सी आसमान में बहती हुई
न आसमा बदला...न बदली है खिड़की
फिर कैसे लंबी हुई ये जिंदगी
क्या था वो जो इसे खिंच कर लंबा कर गया
कोई छोटी कर दे मेरी जिंदगी
अंदर वैसे भी सिमटी हुई है
बाहर से भी कतर दे कोई....
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