आओ बातें करे

Monday, September 13, 2010

अंतिम दिनों में

कभी-कभी हम एक लंबे अरसे तक इंतजार करते हैं, क्यों मालूम नहीं...जबकि चीजें हमारी पहुंच में होती है-छू लेने के फासले पर-फिर भी हाथ नहीं बढ़ाते हम...एक बार बहन की शादी के सिलिसिले में पटना गया था...मैं शादी बित जाने के बाद भी पटना में था...अच्छा लग रहा था अपने लोगों के बीच वहां रहना ...
अपने प्रोफेसर की लाइब्रेरी और वहां सांसे ले रहे समाजवादी आंदोलन के इतिहास को टटोलना...सर बातें करना, उनके जीये को फिर जीना...अचानक लगा,एक बंद कमरे में सर ऊब गए होंगे..सर शारीरिक रूप से कमजोर हो गए...लिहाजा, उनसे कह पड़ा- सर,कल हम गुरुद्वारे चलते हैं...अगली सुबह हम हरमंदिर में थे बैठे थे, चर्चा कर रहे थे सिख पंथ के वजूद पर...अचानक बीच में आ बैठी चुप्पी के बीच मैंने सर से कहा-पिछले 9 सालों से यहां आने की सोच रहा था....
सर का जवाब था मैं सन् 77 से यहां आना चाहता था...हम दोनों इसके बाद चुप थे, क्योंकि दोनों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि हम यहां पहले क्यों नहीं आए...इंतजार क्यों कर रहे थे...अगर जवाब था भी , तो हम बयां करने की स्थिति में नहीं कर थे...सर नास्तिक की तरह जीते मैंने देखा है, पूरी उम्र वो कभी मंदिर नहीं गए और ना किसी देवी-देवता की मूर्ति के आगे मैंने उन्हें झुकते हुए देखा था...लेकिन गुरुद्वारे से निकलते वक्त वो दोबारा मंदिर की तरफ मुड़े और सजदे में किसी तरह छड़ी का सहारा लेकर झुके....जिस इंसान को मुझे गोद का सहारा देकर उठाना या बैठना पड़ता है...चलते वक्त कांधे का सहारा देना पड़ता है...वो नास्तिक इंसान गुरुद्वारा से निकलते वक्त छड़ी के सहारे खुद से दोबारा झुकता हैं...मेरा सहारा भी नहीं लेता...ये मेरे लिए अलग एहसास था...उन्हें देखकर यही लगा कि अंतिम दिनों में लोग शायद जिंदगी की तमाम चीजों को अपना लेते हैं....समेटे लेते है उन सभी चीजों को जो पहले उनसे छूट गया होता है...

1 comment:

ओशो रजनीश said...

बढ़िया लेख है

इसे पढ़कर अपनी राय दे :-
(आपने कभी सोचा है की यंत्र क्या होता है ....?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html