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Wednesday, December 22, 2010

स्मृतिशेष-कुछ लोग दोबारा नहीं मिलेंगे

अपनी छोटी सी, स्पनील दुनिया से निकल दिल्ली आया था..मेरे शहर में कारखाने.. क़ॉलोनिया, स्कूल, जंगल, झार सब था..और एक डैम भी था..पहली बार अलग हुआ था, अपने शहर से, परायी दिल्ली के लिए...सोचता था ना जाने किस तरह के लोग मिलेंगे..मेरे आंखों की चुप्पी कोई पढ़ भी पाएगा या नहीं...या फिर दिल्ली डराने वाली आंखों से जवाब देगी...पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ..दिल्ली में मुझे कुछ वैसे लोग मिले, जिनसे दिल्ली अपने दिल में सांसे भरती रही थी....सुरेंद्र मोहन सर भी उन्हीं में से एक थे...दिल्ली में पहली पहचान समाजवादी दफ्तर में मिली...समाजवादी इतिहास और उसके मर्म से बेखबर मेरे जैसे शख्स को समाजवादी जन परिषद के दफ्तर का जिम्मा मिला था...अक्टूबर 2000 में सजप ने युवा कार्यशाला का आयोजन कानपुर में किया था... मुझे याद है सन् 2000 दस अक्टूबर की सुबह हम कानपुर स्टेशन पर उतरे थे...हमें पनकी जाना था...वहीं एक फार्म हाऊस में युवा कैंप और कार्यकारिणी की बैठक होनी थी...पूरे देश से लोग आने वाले थे...मैंने उनके बुलावे के लिए चिट्ठिया लिखी थी...10 अक्टूबर की सुबह हम (राजीव, पुरूष और मैं) उत्तर प्रदेश के एक गांव में थे...मेरे सामने समाजवादी आंदोलन के धुंरधरों की फौज थी...कोई खद्दर लपेटे, कोई चश्मा लगाए, तो कोई संघर्ष निशानियां लिए था...लेकिन हर चेहर पर जोश था...आंखों में सपना था, समाज को बदलने का...कैंप में बड़ा ही खुशनुमा माहौल था...हर तरफ चहल पहल थी...सुरेंद मोहन, किशन पटनायक, विनोदनंद, योगेद्र यादव जैसे दिग्गज अलग अलग मुद्दे पर अपनी राय रखने वाले थे...कई समकालीन मुद्दे थे...भूमंडलीकरण, समाजवादी आंदोलन की दिशा, एक ध्रुवीय विश्व...मुझे ठीक ठीक याद नहीं है कि सुरेद्र मोहन सर ने किस विषय पर बोला था...बस इतना याद है कि वो जो बोल रहे थे, मैं उसे रिकार्ड कर रहा था...दस साल पहले रिकार्ड किया था...कुछ महीने पहले भी दिल्ली के सहविकास सोसायटी वाले प्लैट में उनसे दोबारा देखने का मौका मिला..विनोद सर (विनोदानंद प्रसाद सिंह, नया संघर्ष के संपादक) वहीं रूके हुए थे...मैंने विनोद सर से बात कर था कि अचानक बगल वाले कमरे से सुरेद्र मोहन सर के कमरे से आवाज आई...कमरे में जाने पर आंटी ने बताया कि प्रिंटर में पेपर फंस गया है...तुम्हें ठीक करना आता है क्या...मैंने प्रिंटर ठीक कर दिया... और साथ ही प्रिंट भी निकाली दी...सुरेंद्र मोहन सर मुझे नाम से जानते थे...मैं एक चैनल में कार्यरत हूं...उस दिन न्यूज रूम में अचानक राजीव कमल जी ने पूछा कि-सुरेंद्र मोहन जी को पहचानते हैं...मैंने जवाब धीरे-धीरे से जवाब दिया-हां..राजीव कमल जी ने बाद में बताया कि मुझे सुरेंद्र मोहन जी पर एक खबर लिखनी है...उनके देहावसान की खबर...मैं उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया है...बिना कुछ बोले...उनकी विदाई की खबर लिख दी...मन में ख्याल आया क्या इसी तरह मुझसे मेरे सारे अपने एक एक बिछड़ जाएंगे...

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